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Blog / 07 Jun 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) नई शिक्षा नीति (New Education Policy)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) नई शिक्षा नीति (New Education Policy)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रो. अरुण कुमार (प्रोफ़ेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय - जे.एन.यू), डा. आनंद कुमार (जाने माने समाजशास्त्री)

चर्चा में क्यों?

NDA सरकार ने नई शिक्षा नीति का मसौदा पेश कर दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को 31 मई को सौंपा है। मंत्रालय की वेबसाइट पर नई शिक्षा नीति को अपलोड कर दिया गया है । अब मंत्रालय 30 जून तक नई शिक्षा नीति पर सुझाव मांगेगा। इसके आधार पर एक जुलाई को नई शिक्षा नीति का कैबिनेट नोट तैयार होगा और कयास लगाए जा रहे हैं कि जुलाई के दूसरे हफ्ते में देश में नई शिक्षा नीति 2019 लागू हो जाएगी।

नई शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु

  • शिक्षा नीति 2019 की शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार से तैयार किया गया है ये देश के हर नागरिक के जीवन से जुड़ सके।
  • पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान पद्धतियों को शामिल करने, 'राष्ट्रीय शिक्षा आयोग' का गठन करने और प्राइवेट स्कूलों को मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने से रोकने की सिफारिश की गई है।
  • आयोग ने शिक्षकों के प्रशिक्षण में व्यापक सुधार के लिए शिक्षक प्रशिक्षण और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को विश्वविद्यालयों या कॉलेजों के स्तर पर शामिल करने की सिफारिश की है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 को भारतीय लोगों, उनकी परम्पराओं,संस्कृतियों और भाषाओँ की विविधता को ध्यान में रखते हुए तेज़ी से बदलते समाज की ज़रूरतों के आधार पर तैयार किया गया है।
  • शिक्षा प्रणाली में बदलाव करते हुए उच्च गुणवत्ता और व्यापक शिक्षा तक सबकी पहुँच सुनिश्चित की गई है। इसके ज़रिए भारत का निरंतर विकास सुनिश्चित होगा साथ ही वैश्विक मंचों पर - आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, समानता और पर्यावरण की देख - रेख, वैज्ञानिक उन्नति और सांस्कृतिक संरक्षण के नेतृत्व का समर्थन करेगा।
  • मसौदे में तीन भाषाओं की नीति का प्रस्ताव है। जिसमें गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र में मातृभाषा, संपर्क भाषा अंग्रेजी के अलावा तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को अनिवार्य किए जाने की सिफारिश की गई है।

त्रिभाषाई नीति को लेकर दक्षिण के राज्यों में हो रहा है विवाद

मसौदे में तीन भाषाओं की नीति का प्रस्ताव है। जिसमें गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र में मातृभाषा, संपर्क भाषा अंग्रेजी के अलावा तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को अनिवार्य किए जाने की सिफारिश की गई है। इसलिए दक्षिण के राज्यों में विवाद चल रहा है। तमिलनाडु में डीएमके राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा ने केंद्र को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर केंद्र की सरकार तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी भाषा को थोपने की कोशिश की तो प्रदेश के लोग सड़क पर उतरकर इसका पुरजोर विरोध करेंगे। तिरुचि ने कहा कि देश में हिंदी भाषी और गैर हिंदी भाषी राज्यों को अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया है। ऐसे में अगर केंद्र की सरकार जबरन हिंदी को लागू कराने का प्रयास करेगी तो हम इसे रोकने के लिए हर परिणाम का सामना करने को तैयार रहेंगे।

सरकार ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत किसी भी क्षेत्र पर कोई भाषा थोपने का इरादा नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि समिति ने मसौदा नीति प्रस्तुत की है जिसे आम जनता की राय के लिए रखा गया है। मंत्रालय के मुताबिक़ अंतिम निर्णय जनता की राय और राज्य सरकारों के परामर्श के बाद ही लिया जाएगा।

क्या है कस्तूरीरंगन समिति?

मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने नई शिक्षा नीति (NEP) के लिए कस्तूरीरंगन कमेटी का जून 2017 में गठन किया था। इस समिति में 11 सदस्य थे। इससे पहले सरकार ने नई शिक्षा नीति को लेकर साल 2015 में T S R Subramanian कमेटी का गठन किया था लेकिन सरकार ने इस कमेटी की सिफारिशों को नहीं माना। कस्तूरीरंगन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के पूर्व अध्यक्ष हैं।

भारत में आज़ादी के बाद बनी शिक्षा समितियां और आयोग

1. डॉ. एस. राधाकृष्णनन् आयोग – साल 1948-49 – विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की स्थापना 2. मुदालियर शिक्षा आयोग – साल 1952-53 – इसे माध्यमिक शिक्षा आयोग भी कहा जाता है 3. डॉ. डीएस कोठारी आयोग – साल 1964 – इसमें सामाजिक उत्तरदायित्व व नैतिक शिक्षा पर ध्यान दिया गया 4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 5. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 6. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर पुनर्विचार – 1992 – एक सजग व मानवतावादी समाज के लिए शिक्षा का इस्तेमाल। इसे आचार्य राममूर्ति समिति भी कहा जाता है। 7. एम. बी. बुच समिति – साल 1989 – दूरस्थ शिक्षा माध्यम पर बनी पहली शिक्षा समिति। 8. जी.राम रेड्डी समिति – साल 1992 – दूरस्थ शिक्षा पर केन्द्रीय परामर्श समिति 9. प्रोफ़ेसर यशपाल समिति – 1992 – बोझमुक्त शिक्षा की संकल्पना 10. रामलाल पारेख समिति – 1993 – बीएड पत्राचार समिति 11. प्रो. खेरमा लिंगदोह समिति – 1994 – पत्राचार बीएड अवधि 14 माह तय की गई 12. प्रो. आर टकवाले समिति – साल 1995 – सेवारत अध्यापकों हेतु पत्राचार से बीएड 11. राष्ट्रीय ज्ञान आयोग – 2005 – ज्ञान आधारित समाज की संकल्पना व प्राथमिक स्तर से अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा को अनिवार्य करने की सिफारिश की गई 12. जस्टिस जे एस वर्मा समिति – साल 2012 – शिक्षकों की क्षमता की समय-समय पर जाँच 13. राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2017 – राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2017 का मसौदा तैयार करने के लिए प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक एवं पद्मविभूषण डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। मौजूदा वक़्त में इस रिपोर्ट के आधार पर नई शिक्षा नीति 2019 तय की जा रही है।

शिक्षा की जिम्मेदारी किसकी?

शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है। 1976 से पहले शिक्षा राज्य सूची का विषय थी। लेकिन 1976 में किये गए 42वें संविधान संशोधन द्वारा जिन पाँच विषयों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डाला गया, उनमें शिक्षा भी शामिल थी। ग़ौरतलब है कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र और राज्य मिलकर काम करते हैं।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम

भारत में शिक्षा का अधिकार’संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत मूल अधिकार के रूप में शामिल है। 2 दिसंबर, 2002 को संविधान में 86वाँ संशोधन किया गया था और इसके अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया। इस मूल अधिकार के लिए साल 2009 में नि:शुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right of Children to Free and Compulsory Education-RTE Act) बनाया गया। जिसके बाद 2010 से इसे लागू किया गया। इसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक समावेशन को बढ़ावा देना और माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन के नए अवसर की तलाश करना है। इसके तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है।

शिक्षा के लिए चलाई गई योजनाएं

1.प्रारंभिक शिक्षा

  • सर्व शिक्षा अभियान - 2001
  • समग्र शिक्षा
  • मिड डे मील योजना -1995
  • पढ़े भारत बढ़े भारत - 2014

2.राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की योजनाएं - 2009

3.राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) 2013

भारत में साक्षरता दर

  • 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में क़रीब 74.04% लोग साक्षर है।
  • भारत में साक्षरता के मामले में पुरुष और महिलाओं में काफ़ी अंतर है
  • पुरुषों की साक्षरता दर - 82.14 %
  • महिलाओं की साक्षरता दर - 65.46 % (कारण - अधिक आबादी और परिवार नियोजन की जानकारी कमी है)
  • हालाँकि भारत मे साक्षरता पहले के मुक़ाबले काफी बेहतर हुई है।
  • आज़ादी वक़्त भारत की साक्षरता दर 12 - 18 % ही थी। लेकिन अब भी भारत दुनिया के सामान्य साक्षरता दर -85% काफी कम है।

संयुक्त राष्ट्र के तहत भी मिला है शिक्षा का अधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ सभी को शिक्षा का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 26 के मुताबिक़ कम से कम शुरुआती दौर में शिक्षा मुफ्त मिलनी चाहिए और शुरुआती शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए । संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ शिक्षा मानव व्यक्तित्व के पूर्ण विकास और मालिक स्वतंत्रता के सम्मान के लिए ज़रूरी है।

शिक्षा से जुडी प्रमुख समस्याएँ

1. प्राथमिक शिक्षा की समस्या

  • विद्यालयों की कमी - भारत में लगभग 6 लाख स्कूल के कमरों की कमी है
  • शिक्षकों की कमी - कम शिक्षकों के नाते कई कक्षाओं का भार ऐसे में सभी बच्चों पर ध्यान देना संभव नहीं। शिक्षा के अधिकार कानून में प्रत्येक 35 विद्यार्थियों पर एक सिर्फ शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधानहै। लेकिन इस लक्ष्य को अभी हांसिल नहीं किया जा सका है।
  • बुनियादी ढांचे में कमी - बिजली, पानी, शौचालय, बाउंड्री दीवार, लाइब्रेरी, कंप्यूटर जैसी बहुत कम ही स्कूलों में सही है। सरकारी स्कूलों में शौचालय होने के बावजूद साफ़ सफाई और पानी की कमी। जिसके चलते लड़कियों का स्कूल छोड़ना। स्कूलों में क़रीब 90 प्रतिशत से अधिक सार्वजनिक धन अध्यापकों के वेतन और प्रशासन पर ही खर्च हो जाता है।
  • ग़रीबी/ बल मज़दूरी - मिड डे मील और मुफ़्त शिक्षा के बावजूद भी क़रीब 29% छात्र बिना 5 वीं की पढ़ाई पूरी किए ही स्कूल छोड़ देते हैं।
  • ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी - शिक्षकों के ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैये के चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को ज्ञान नहीं बढ़ पाता। शिक्षकों के समर्पण भाव से पढ़ाने में कमी आई है। इस अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते में शिक्षक स्कूल नहीं जाना चाहते हैं।
  • ASER (ANNUAL STATUS OF EDUCATION REPORT)के मुताबिक़ ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार ने शिक्षा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में भले ही निवेश किया है लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है।

2. माध्यमिक शिक्षा की समस्या

  • माध्यमिक स्तर की शिक्षा में स्कूलों की कमी, पाठ्यक्रमों की उपलब्धता न होना और सामग्री के मामले में भी पर्याप्त विकल्प की वजह
  • लाखों शिक्षक संविदा पर काम कर रहे हैं और उनमें से आधे प्रशिक्षित भी नहीं हैं
  • केवल 60 प्रतिशत बच्चे 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं। पारिवारिक विवशताओं और सामाजिक हालात की वज़ह से बच्चे साधारण रोज़गार की ओर चले जाते हैं।
  • अध्ययन बताता है कि सेकेंड्री स्कूल में अच्छे अंक लाने के दबाव से छात्रों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से बढ़ रही है

3. उच्च शिक्षा की समस्याएं

साल 2017 में मानव संसाधन विकास समबन्धी स्टैंडिंग कमेटी ने भारत में उच्च शिक्षा के समक्ष चुनौतियाँ और समस्याएं पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

  • संसाधनों की कमी - UGC के बजट का लगभग 65% केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनके कॉलेजों द्वारा उपयोग किया जाता है, जबकि राज्य विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों को शेष 35% ही मिलता है।
  • शिक्षकों की कमी - UGC के मुताबिक़ कुल स्वीकृत शिक्षण पदों में से 35% प्रोफेसर, 46% एसोसिएट प्रोफेसर और क़रीब 26% सहायक प्रोफेसर के पद खाली हैं।
  • शिक्षकों की जिम्मेदारी और प्रदर्शन - विश्विद्यालय और कॉलेजों में प्रोफेसरों की ज़िम्मेदारी और प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है
  • रोज़गार परक कौशल का अभाव - तकनीकी शिक्षा के छात्रों में रोज़गारपरक कौशल का अभाव देखा गया है।
  • संस्थानों का एक्रेडेशन - उच्च शिक्षण संस्थानों को एक्रेडेशन देना उच्च शिक्षा के रेगुलेटरी अरेंजमेंट्स का महत्वपूर्णअंग होना चाहिए।
  • सरकारें शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिये हमेशा काम करती रहती हैं। लेकिन ऐसे कामों में राज्य की ज़रूरत के हिसाब से काम नहीं किया जाता है जोकि बाधा है।
  • भारत में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता एक बहुत बड़ी चुनौती है। टॉप-200 विश्व रैंकिंग में बहुत कम भारतीय शिक्षण संस्थानों को जगह मिल पाती है।
  • भारत का उच्च शिक्षा तंत्र अमेरिका, चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बडा उच्च शिक्षा तंत्र है। विगत 50 वर्षों में देश के विश्वविद्यालयों की संख्या में 11.6 प्रतिशत, महाविद्यालयों में 12.5 प्रतिशत, विद्यार्थियों की संख्या में 60प्रतिशत और शिक्षकों की संख्या में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है। लेकिन मुश्किल ये है कि इसके बावजूद भी उच्च शिक्षा की सुलभता का सपना साकार नहीं हो पा रहा है।

शिक्षा की वास्तविकता

1. स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच पाता है 2. भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी है 3. भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए हर साल सात अरब डॉलर यानी करीब 43 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च करते हैं क्योंकि भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर घटिया है। एक आंकड़े के मुताबिक- 18 से 24 वर्ष के महज 12.4 प्रतिशत विद्यार्थी ही विश्वविद्यालयों में प्रवेश पा रहें हैं। 4. एक लाख से ज्यादा भारतीय छात्र अकेले अमेरिका में पढ़ रहे हैं। 5. अमेरिका जैसे देश अपनी उच्च शिक्षा की बदौलत विदेशी छात्रों से भी विदेशी मुद्रा प्राप्त कर रहे हैं और उसे अपने विकास में लगा रहे हैं। इसके उलट, हम अपने ही छात्रों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाने के कारण अपनी मुद्रा गंवा रहे हैं। 6. शिक्षक छात्रों को पढ़ने के लिए आकर्षित करने में विफल रहे हैं। 7. शिक्षा तंत्र दूसरे तमाम विभागों की ही तरह भ्रष्टाचार से भी ग्रस्त है। 8. यहां मौलिक रिसर्च बहुत कम होता है। 9. हमारे विश्वविद्यालय आज राजनीति का अखाड़ा बन गए हैं। कुलपतियों की नियुक्ति राजनीतिक आधार पर होती है।

  • हमारी आबादी में 25 वर्ष तक के युवाओं की संख्या क़रीब 51 प्रतिशत है, लेकिन इनमें से मात्र 12-14 प्रतिशत लोग ही (18-24 साल तक के छात्र) उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेते हैं।
  • भारत में शिक्षा, उच्च शिक्षा और अनुसंधान के रास्ते में एक बड़ी बाधा है धन की कमी। उच्च शिक्षा के लिए बजट का यदि 24 % हिस्सा इस क्षेत्र को दे दिया जाए तो काफी सुधार आ जायेंगे